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Mung bean

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

वैसे तो मध्य प्रदेश की चर्चा आमतौर पर कृषि के क्षेत्र में कार्य करने हेतु होती रहती है। बार-बार न्यूज़ मीडिया के माध्यम से यह बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के हित के लिए कार्य कर रही है। किसान किस तरह से आत्मनिर्भर हो और किसान की आय में किस तरह से बढ़ोतरी हो, इसको लेकर लगातार मध्य प्रदेश सरकार काम करने की कोशिश कर रही है।

भोपाल के किसानों की फसल का अब क्या होगा ?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किसानों की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है। किसानों को उनकी फसल का उचित रेट भी नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसान काफी मायूस है। भोपाल के मंडियों में किसानों को उनके उगाई गई फसल लहसुन और
प्याज का उचित मूल्य भी प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे किसानों में काफी नाराजगी बनी हुई है। किसानों की तो यह स्थिति हो चुकी है कि फसल को बाजार तक लाने का किराया भी जुटा पाना मुश्किल हो गया है। इस बार मौसम ने भी किसानों के साथ शायद अन्याय कर दिया है, क्योंकि जहां देश के कई राज्यों में बारिश नहीं होने के कारण फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है, वहीं देश के अन्य राज्यों में अधिक बारिश होने के कारण सारे फसल पानी लग जाने के कारण बर्बाद हो चुके हैं। फसलों का इस तरह से बर्बाद हो जाना किसानों के लिए बहुत ही महंगा साबित हो रहा है। इस बार मौसम की बेरुखी के कारण ऐसे ही फसलों की उपज में कमी पाई गई है, वहीं दूसरी तरफ किसानों ने जो फसल उगाई थे उसका भी उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है।


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कृषि मंत्री का अजीबोगरीब बयान

एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार विश्व के बाजारों में अपने उत्पादन को प्रमोट करती हुई दिख रही है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की राजधानी में ही किसानों का यह हाल है कि उनके द्वारा उपजाए गए फसलों का ही उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में किसानों के साथ सरकार का रुख नरम होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समस्याओं का समाधान करने के बजाय मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री ने कुछ इस तरह का बयान दे दिया जिससे किसानों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री कमल पटेल समस्याओं का निराकरण करने के बजाय है यह कहते हुए पाए गए कि किसानों को इस तरह की फसल नहीं उगाना चाहिए जिसका मंडियों में उचित मूल्य नहीं मिलता है। अब सवाल यह है कि क्या किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिसका मंडियों में उचित मूल्य मिलता हो?


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यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के एक किसान ने कृषि मंत्री श्री पटेल को फोन कर किसानों की हालत से अवगत कराया। बातचीत के दौरान कृषि मंत्री श्री पटेल ने यह कहा कि मैं किसानों को उनकी उपज का यानी लहसुन प्याज का उचित मूल्य कहां से दूं, कुछ दिन और रुक जाओ लहसुन के दाम 4 गुना अधिक हो जाएंगे। लेकिन किसानों का कहना है कि कुछ दिन बाद बाजार में नए फसल आ जाएंगे तो फिर लहसुन और प्याज का उचित मूल्य कहां से प्राप्त होगा। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास कृषि विभाग है, मेरे अंदर लहसुन और प्याज का विभाग नहीं आता है। कृषि मंत्री का किसानों के प्रति इस तरह का विवादास्पद बयान देना बहुत ही आपत्तिजनक है। इस तरह के बयानों से किसानों को सिर्फ निराशा हाथ लगती है किसान मायूस हो जाते हैं और इसका असर आने वाले समय में व्यापक स्तर पर होने लगता है क्योंकि अगर किसान फसल ही नहीं उगाएंगे तो फिर क्या हालात होगी। ये भी पढ़ें : प्याज़ भंडारण को लेकर सरकार लाई सौगात, मिल रहा है 50 फीसदी अनुदान बात यहीं तक नहीं रुकती है। मंत्री जी ने किसानों को यह सलाह देते हुए कहा कि उन्हें मूंग की खेती करनी चाहिए। कई बार किसानों को उनकी फसल पर दोगुना तिन गुना अधिक रेट मिलता है। इसीलिए किसान को परेशान नहीं होना चाहिए। अगर किसान मूंग की खेती करते हैं तो उन्हें ज्यादा फायदा होगा। लेकिन किसानों का कहना है कि इससे पहले हमने सोयाबीन की खेती की थी उसका भी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गया। किसी तरह का कोई सर्वे सरकार के द्वारा नहीं कराया गया, अगर हम मूंग (Mung bean) की फसल का उपज करते हैं तो इसकी गारंटी कौन लेगा कि आने वाले समय में इस फसल पर हमें अच्छा रेट मिल पाएगा।


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मूंग का मिल जाएगा अच्छा रेट?

अब यह समझने की भी जरूरत है कि फसलों को उगाने में किसान अपना सब कुछ लगा देते हैं और इन्हीं फसलों को बेचकर अपना उपार्जन करते हैं। फसलों का मौसम की बेरुखी के कारण बर्बाद हो जाना और उसके बाद इनकी समस्याओं को दरकिनार कर विवादास्पद बयान सरकार के मंत्रियों के द्वारा देना क्या किसानों के लिए हितकारी साबित होगा। जमीनी स्तर पर यह किस तरह से संभव हो पाएगा की किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिनका मार्केट वैल्यू यानी बाजार में अच्छे रेट मिल रहे हैं। क्योंकि फसल को उपजाने में मौसम का अहम योगदान होता है, यदि मौसम फसलों के अनुकूल होती है तो अच्छी उपज होती है इसके विपरीत अगर मौसम प्रतिकूल हो तो उपज पर गहरा असर पड़ता है और पैदावार अच्छी नहीं होती है। फसल वृद्धि का मौसम के साथ गहरा संबंध है। कुछ फसलों को अपना अंकुरण शुरू करने से लेकर और आगे विकास जारी रखने तक के लिए एक तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में यह सुनिश्चित करना कैसे संभव है कि मौसम के विपरीत जाकर सिर्फ मूंग की खेती करने से किसानों की समस्याओं का हल हो जाएगा। इस समय सरकार को किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं पर विचार करते हुए उनके समस्याओं का निराकरण करना चाहिए और किस तरह से किसान बेहतर खेती कर पाए और उसके द्वारा उपजाए गए फसलों को उचित मूल्य बाजार और मंडियों में प्राप्त हो, इसके लिए सरकार को पहल करना चाहिए।


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साथ ही साथ सरकार को किसानों के फसल उगाने के लिए नए तकनीकों के साथ जोड़ने और प्रशिक्षण देना चाहिए, जिससे किसान आने वाले समय में अच्छा उपज करके अपनी फसल को बाजार और मंडियों में बेचकर उचित मूल्य को प्राप्त कर सके और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ सके।
मूंग का भाव एमएसपी तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की कवायद शुरू

मूंग का भाव एमएसपी तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की कवायद शुरू

भोपाल। मूंग (Mung bean) के भाव को एमएसपी (MSP) या न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। मध्यप्रदेश की मंडियों में जल्दी ही मूंग के दामों में तेजी आ सकती है।

दूसरे राज्यों के कारोबारी ही मूंग की नीलामी में शामिल

मिली जानकारी के अनुसार 2021-22 सीजन में गोदाम से बिकने वाली मूंग की ई-नीलामी में राज्य सरकार, प्रदेश के मूंग कारोबारियों को अलग कर सकती है। इस बार दूसरे राज्यों के कारोबारी ही मूंग की नीलामी में शामिल होंगे। उन सभी कारोबारियों को जिला स्तर से शर्त माननी होगी, कि वो सभी कारोबारी मूंग खरीद के बराबर की एफडीआर अथवा बैंक गारंटी के कागजात प्रस्तुत करें।

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मान लिया कि किसी कारोबारी को एक करोड़ रुपए की मूंग खरीदनी है, तो उसे उतने ही रुपए की एफडीआर अथवा बैंक की गारंटी देनी होगी। इस प्रक्रिया के बाद जिला कलेक्टर या उनके अधिकृत अधिकारी के समक्ष इसका प्रमाण देंगे। मंडी अनुज्ञा पत्र भी प्रदेश से बाहर का प्राप्त करना आवश्यक होगा। सभी कागजी कार्यवाही पूरी होने के बाद ही कारोबारी मूंग की ई-नीलामी में शामिल हो सकेंगे। इस प्रक्रिया के पीछे सरकार चाहती है कि, मूंग रीसेल के लिए प्रदेश के बाजार में न आए, जिससे मंडियों में मूंग के दामों में बढ़ोतरी हो सके और मूंग के रेट को कुछ सहारा मिल सके। इससे मूंग को एमएसपी तक पहुंचाने की कवायद सफल हो सकती है।

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कारोबारियों के सामने आ सकती हैं मुश्किलें

सरकार के इस फैसले के बाद, मूंग की ई- नीलामी में शामिल होने वाले कारोबारियों के सामने काफी मुश्किलें आ सकती हैं। क्योंकि, इस फैसले के बाद कारोबारियों को मूंग खरीद के लिए बड़ी रकम लगानी होगी।

फैसले के बाद 200 रुपए बढ़े भाव

मूंग की ई-नीलामी में सरकार के इस फैसले के बाद, मूंग के भाव मे 200 रुपये तक कि बढ़ोतरी हुई है। इंदौर मंडी में अब 6300 रु की जगह 6650 रु प्रति क्विंटल और एवरेज में 5400 रु की जगह 6000 रु प्रति क्विंटल हो गए हैं
MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना लक्ष्य

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने
मूंग, अरहर और उड़द की उपज की समर्थन मूल्य पर खरीद करने की घोषणा की है। खरीद प्रक्रिया क्या होगी, किस दिन से खरीद चालू होगी, किसान को इसके लिए क्या करना होगा, सभी सवालों के जानिए जवाब मेरीखेती पर। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में कृषकों के मध्य फसल विविधता (Crop Diversification) को बढ़ाना देने के लिए यह फैसला किया है। इसके तहत छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में बदलाव किया है।

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अधिक मूल्य दिया जाएगा -

सरकार के निर्णय के अनुसार अब दलहन पैदा करने वाले किसानों को दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक दिया जाएगा। ऐसा करने से प्रदेश में अधिक से अधिक किसान दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे।

दलहनी फसलों को प्रोत्साहन -

छत्तीसगढ़ प्रदेश राज्य सरकार ने छग में दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मूंग, अरहर, उड़द की उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की है।

फसल विविधीकरण (Crop Diversification) -

मूंग, अरहर, उड़द जैसी पारंपरिक दलहनी फसलों को समर्थन मूल्य प्रदान करने का राज्य सरकार का मकसद फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना भी है।

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फसल विविधीकरण के लिए राज्य सरकार ने मूंग, उड़द और अरहर को एमएसपी की दरों पर खरीदने की घोषणा की है।

इतनी मंडियों में खरीद -

ताजा सरकारी निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश की 25 मंडियों में अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर दाल की खरीदारी की जाएगी। मंडिंयों का चयन करते समय इस बात का ख्याल रखा गया है कि, अधिक से अधिक किसान प्रदेश सरकार की योजना से लाभान्वित हों। मंडियां नजदीक होने से दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को मौके पर लाभ मिलेगा और उनकी कमाई बढ़ेगी।

खरीफ खरीद वर्ष 2022-23 -

राज्य सरकार के फैसले के तहत अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में मौजूदा खरीफ फसल (Kharif Crops) खरीद वर्ष 2022-23 में अरहर, मूंग और उड़द की खरीद एमएसपी पर की जाएगी। सरकारी सोसायटी को हरा मूंग बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 7755 रुपए मिलेंगे। राज्य सरकार द्वारा संचालित नोडल एजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विवणन संघ (मार्कफेड) द्वारा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दाल की खरीदारी की जाएगी।

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दलहनी फसलों का रकबा बढ़ाना लक्ष्य -

छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने राज्य में दलहन फसलों का रकबा बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कृषि विभाग को किसानों को दलहन की पैदावार करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों को दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने हेतु दाल को एमएसपी के दायरे में लाने की सरकारी मंशा की जानकारी दी।

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मीडिया को उन्होंने बताया कि, 2022-23 के खरीफ फसल प्लान के अनुसार दलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है। उन्होेंने दलहनी फसलों के रकबे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी होने की जानकारी दी।

उत्पादन का लक्ष्य बढ़ा -

राज्य सरकार ने इस साल प्रदेश में दो लाख टन से अधिक (232,000) दाल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य पिछले खरीफ सीजन के संशोधित अनुमान से लगभग 67.51 फीसदी अधिक है।

पिछली खरीद के आंकड़े -

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने खरीफ सीजन 2021-22 में राज्य के दलहन उत्पादक किसानों से 139,040 टन दाल की खरीद की थी। पिछले साल के 501 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस बार 520 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दाल उत्पादन का लक्ष्य प्रदेश में रखा गया है।

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अहम होंगी ये तारीख -

प्रवक्ता सूत्र आधारित मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने इस साल एमएसपी पर दाल की खरीद के लिए सभी संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, मार्कफेड रीजनल ऑफिस और मंडी बोर्ड को विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं। किसानों के लिए एमएसपी पर उड़द, मूंग और अरहर बेचने की तारीख जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक किसान 17 अक्टूबर 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2022 तक उड़द और मूंग की उपज एमएसपी पर बेच पाएंगे। अरहर की खरीद 13 मार्च 2023 से लेकर 12 मई 2023 तक की जाएगी।